मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग ने अपने शोध में जारी किये चौंकाने वाले आंकड़े

श्रीनगर। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली राजकीय मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग ने स्मैक, अफीम, हेरोइन आदि के नशे की गिरफ्त में आए व्यक्तियों पर शोध कार्य के माध्यम से चौंकाने वाले आंकड़े जारी किए हैं। 10 से 19 सालके छोटे बच्चे भी स्मैक, अफीम जैसे गंभीर नशे के आदी हो रहे हैं, जो कि बेहद चिंताजनक है। रिसर्च में पाया गया कि बच्चों, युवाओं के साथ-साथ कई नौकरी पेशा और विवाहित व्यक्ति भी इस नशे के जाल में फंसे हुए हैं। साथ ही नशे का आदी युवा हर दिन औसतन 2000 रूपये नशे पर खर्च करता है। जिसका असर इनके साथ-साथ इनके परिजनों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। मनोरोग विभाग ने त्वरित नशे की गिरफ्त में आये 40 लोगों की कॉउंसलिंग एवं दवाईयां शुरु कर इलाज शुरु किया तो मनोचिकित्सकों को 40 में 30 लोगों को नशे से छुटकारा दिलाने और पूरी तरह से स्वस्थ्य करने में सफलता भी मिली है। मनोरोग विभाग का यह रिसर्च अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त जर्नल्स न्यूरो क्वांटोलोजी (Neuroquantology) में भी प्रकाशित हो चुका है।
श्रीनगर मेडिकल कॉलेज के टीचिंग अस्पताल बेस चिकित्सालय में नशे के आदी हो चुके युवा एवं एवं पुरुष वर्ग का इलाज मनोरोग विभाग के मनोचिकित्सक करने में जुटे हैं। जिसमें मनोरोग चिकित्सकों ने ऐसे 40 नशे के आदी हो चुके युवाओं पर मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सीएमएस रावत के सुपरविजन में रिचर्स किया तो कई चौकाने वाले तत्थ सामने आये है। मनोरोग चिकित्सकों ने पाया कि स्मैक का नशा शहरों में ही नहीं बल्कि शहर से लगे आस पास के गांवों में भी पहुंचा है। जिसकी चपेट में 33 युवा एवं 7 शादी शुदा मध्यम वर्गीय पुरूष पाए गए। इनमें ग्रामीण परिवेश के 13 आदमी थे। स्मैक का नशा करने वालों में 10वीं मैं पढ़ने वाले 5 छात्र, इंटर में पढ़ने वाले 13 छात्र, ग्रेजुएशन के 17 तथा पोस्ट ग्रेजुएट 5 के छात्र थे। नशा करने वाले होस्टल अथवा घर से बाहर रूम लेकर रहने वाले ही नही बल्कि संयुक्त परिवार में रहने वाले युवा भी थे। मनोचिकित्सकों ने शोध में पाया कि 11 बच्चे ऐसे थे, जिन्होंने 10-19 साल की उम्र में उक्त नशा शुरु कर दिया था। जबकि 20-29 साल के बीच 28 युवाओं ने नशा शुरु किया। और 34 साल की उम्र में भी नशे की शुरुआत करने वाला एक व्यक्ति पाया गया। स्मैक नशे की लत (डिपेंडेंसी)जब पड़ जाती है तो इससे ग्रसित एक युवा एक दिन में औसत दो हजार रूपये तक नशे में खर्च करता था। उक्त रिसर्च मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मोहित सैनी, डॉ.पार्थ दत्ता व सीनियर रेसिडेंट डॉ.गार्गी शर्मा द्वारा किया गया।

सीधे दिमाग पर पड़ता है इस गंभीर नशे का असर: डॉ. सैनी
श्रीनगर मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर एवं इंचार्ज, डॉ.मोहित सैनी ने बताया कि स्मैक, अफीम आदि के नशे के शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक दुष्प्रभाव को दर्शाता एक शोध कार्य मेडिकल कॉलेज में किया गया है, जो संभवतः इस विषय पर इस क्षेत्र का प्रारंभिक शोध है। श्रीनगर एवं रुद्रप्रयाग जैसे पहाड़ी क्षेत्रों से पिछले कुछ सालों में स्मैक/अफीम के नशे की गिरफ्त में आये कई मरीज बेस अस्पताल आये हैं। स्मैक अत्यधिक गंभीर किस्म का नशा है। जिसकी आदत पड़ने पर इसका सीधा असर दिमाग के उन महत्वपूर्ण हिस्सों पर पड़ता है जिनका काम सोच विचार करना, समझना, किसी कार्य को अच्छे से करना तथा भावनाओं को महसूस करना है। दिमाग के इन हिस्सों में कमी आने पर चिड़चिड़ापन, उदासी, गुस्सा, कमजोर याददाश्त, नींद न आना, दौरा पड़ना जैसे गंभीर लक्षण आते हैं। स्मैक का नशा मरीज के दिमाग के साथ साथ उसके पूरे व्यक्तित्व को बदल सकता है। बेस अस्पताल के मनोरोग विभाग की टीम लगातार दवाइयों एवं कॉउंसलिंग के माध्यम से नशे से पीड़ित व्यक्ति का इलाज करती है। शोध में पाया गया कि स्मैक नशे के काफी सामाजिक दुष्प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। जिसमें मुख्य रूप से नशे के कारण एक दोस्त दूसरे दोस्त को खो देता है। जैसे नशे के कारण आत्महत्या, एक्सीडेंट जैसी विकट घटनाओं का होना। घर के नौकरी पेशा माता-पिता के नौकरी पर भी असर पड़ रहा है। नशे का आदी युवा नशे की आपूर्ति के लिए अपराध करता है, जिससे चोरी करने की घटनाएं शामिल होती हैं। घर से लेकर अन्य स्थानों से चोरी कर स्मैक की खरीददारी की जाती है। जबकि नशे के कारण आज कई परिवार कर्ज में डूब चुके हैं।
नशा बेचने वाला पहले फ्री में देता है नशे की सामग्री
शोध में यह बात भी सामने आयी है कि स्मैक जैसे नशे को बचने वाले लोग पहले युवाओं को मुफ्त में स्मैक देते है और बाद में धीरे-धीरे नशे की लत लगने पर युवा मंहगे दामों पर स्मैक खरीदने के आदी बन जाते है। यह लोग हरिद्वार या नजीबाबाद जैसे अन्य शहर से खरीदकर यहां बेचते है। पुलिस में पकड़े जाने के बाद भी यहीं खुलासे सामने आये हैं।

बच्चे के व्यवहार में परिवर्तन होने पर रहें सजग: प्राचार्य
मेडिकल कॉलेज श्रीनगर के प्राचार्य प्रो. सीएमएस रावत ने कहा कि बच्चों और अभिभावकों के बीच संवाद होना जरूरी है, यदि परिवार के बीच बच्चे का कम्युनिकेशन टूटा तो बच्चा अलग ट्रेक पर जा सकता है। बच्चे का व्यवहार परिवर्तन ना हो इसके लिए सजग रहना चाहिए। यहीं नहीं बच्चा जब कोचिंग या अन्य जगह जाता है तो बच्चे के संपर्क में रहना चाहिए, अभिभावक को चाहिए कि बच्चे के टीचर, दोस्तों एवं आस-पास के लोगों से संपर्क में रहना चाहिए। ताकि बच्चों के बीच संवाद के साथ बच्चे की हर गतिविधि पर नजर रखी जा सके।

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